Read Hindi stories for class 6 and 7 students with moral values. These are short and long Hindi stories for kids with naitik Shiksha.
Hindi stories for class 6 and 7 students
There are 3 good stories you will read below.
टपके का डर
जंगल से करीब 1 मील की दूरी पर एक गांव था रात के समय गांव में प्रायः जंगली जानवर घूम जाते थे और गांव के बाहरी हिस्से में चौपायों को मार जाते थे कभी-कभी आदमी भी शिकार होते – होते बच जाते थे.
गांव के बाहरी इलाके में एक बुढ़िया का परिवार रहता था।
उसके मकान के पीछे खाली हिस्से में चौपायों का घर था।
बुढिया के कमरे के पीछे चौपायों के लिए छप्पर पड़ा था। इस समय घर में एक भी चौपाया नहीं था। इसलिए घर की विशेष देखभाल नहीं की जा रही थी। गांव का कोई भी पशु उसमें आ जाता था, और चला जाता था। बरसात के दिन थे रात के करीब 2:00 बजे थे। आकाश में बादल घिरे हुए थे। बरसात होने ही वाली थी।
रह-रहकर बिजली चमक रही थी। थोड़ी देर में बूंदाबांदी के बाद बरसात शुरू हो गई थी।
जोर से बादल गरजा तो बुढिया की नींद टूट गई।
बुढ़िया के साथ उसका नाती लेटा हुआ था। बुढ़िया उठी तो वह भी उठकर बैठ गया। बुढ़िया ने बाहर झांककर देखा तो पानी बरस रहा था। पिछले वर्ष बुढ़िया की छत टपक रही थी इस वर्ष भी वह डर रही थी।
अभी बहुत जोर से वर्षा नहीं हुई थी।
अपनी दादी को चिंतित देख कर उस लड़के ने कहा दादी इतनी घबराई हुई क्यों हो?
बुढ़िया ने कहा बेटा पर साल छत खूब टपकी थी।
सोचा था बरसात के बाद छत पलटवा लेंगे नहीं पलटवा पाई।
वह बोला ! दादी टपका से डरती हो ?
अरे बेटा तुम क्या जानो मुझे इतना शेर का डर नहीं जितना टपके का पीछे चौपायों के घर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था। शेर बुढिया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था। कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थी उन्हीं खाली जगह से आवाज शेर तक पहुंच रही थी।
शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था , कि टपका ऐसा कोई जीव है जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है ?
अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था।
शेर शिकार के लिए इधर आया था। बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहां शरण लेनी पड़ी थी।
रिमझिम पानी बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके के बारे में सोचता रहा।
उसी गांव के धोबी का गधा शाम से ही खो गया था।
सुबह 5:00 बजे उसे कपड़े की गठरी लेकर घाट जाना था।
इसलिए धोबी सुबह 3:00 बजे जग गया था। बूंदा – बांदी में ही वह गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा।
हालांकि घुप अंधेरा था , लेकिन जब – जब बिजली चमकती थी। रास्ता नजर आ जाता था।
खोजते खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घर के सामने खड़ा होकर इधर- उधर देखने लगा। उसने घर की ओर भी नजर डाली। जैसे ही बिजली कड़की उसे बिजली की चमक में छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया। वह घर में चला गया शेर दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा था। धोबी गया और उसने कान पकड़ कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा कामचोर कहीं का यहां खड़ा है तुम्हें कहां – कहां ढूंढे आया।
शेर ने समझा कि आ गया टपका जो बुढ़िया बता रही थी।
वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा।
धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया। आगे गर्दन के बाल पकड़े और दो ऐंठ पेट पर लगाई और कहा चलो बेटा।
शेर दौड़ने लगा धोबी ने अपने पैरों के पंजे शेर के आगे वाली कांख में फंसा लिए जिससे वह गिर नहीं। धोबी सावधानी से शेर की पीठ पर बैठा जा रहा था। इसी बीच ज़ोर से बिजली कड़की बिजली की चमक शेर पर पड़ी तो सिर के बाल और रंग देखकर धोबी हैरत में रह गया। उसने सोचा यह तो गधा नहीं कुछ और ही है।
अब कुछ कुछ दिखाई देने लगा फिर भी कोई चीज साफ नजर नहीं आ रही थी।
उसने देखा कि सामने रास्ते में पेड़ की एक मोटी डाल नीची है। उसे थोड़ा उचक्कर पकड़ा जा सकता है। जैसे ही शेर पेड़ के नीचे से निकला धोबी ने उछल कर डाल पकड़ ली और लटक गया। शेर ने जब अनुभव किया कि पीठ पर अब तक का नहीं है तो वह पूरी ताकत के साथ जंगल की ओर दौड़ पड़ा। शेर दौड़ते हुए सोचता जा रहा था बुढ़िया ठीक कह रही थी कि शेर का डर नहीं जितना टपके का।
चतुराई की जीत
( Hindi stories for class 6 and 7 students )
एक गांव में चतुरी अपनी पत्नी के साथ रहता था। गांव में जो थोड़ा-बहुत मिल जाता था ,उसी से उस का गुजारा चल रहा था। एक दिन उसने सोचा क्यों ना शहर जाकर कमाया जाए ,वह शहर चला गया ,वहां उसने अपनी सूझबूझ से कुछ ही दिनों में ढेर सारा पैसा कमा लिया।
अब वह गांव लौटना चाहता था ,तभी उसे याद आया कि गांव के रास्ते में जो जंगल पड़ता है।
वहां डाकू रहते हैं यदि उन्हें पैसे दिख गए तो वह सब ले लेंगे।
उसने कुछ पैसों से एक घोड़ी ख़रीदकर उसके पूछ में ₹50 बांध दिए अब वह गांव की और चल पड़ा। रास्ते में डाकुओं ने उसे घेर लिया ,जब उन्होंने चतुरी से पैसे मांगे तो चतुरी ने कहा मेरे पास पैसे कहां है ,जो थे उसकी घड़ी खरीद ली लेकिन इस घोड़ी की एक खासियत है कि अगर इसकी पूंछ पर मारो तो ₹50 देती है।
डाकू को विश्वास दिलाने के लिए चतुरी ने घोड़ी की पूंछ पर डंडा मार कर बताया ,घोड़ी की पूंछ से ₹50 गिर गए यह देखकर डाकुओं का सरदार बोला अब यह घोड़ी हमारी हुई। चतुरी ने कहा अगर बिना मोल दिए घोड़ी को लोगे तो पैसे नहीं देगी उसने हजार रुपए में डाकुओं को घोड़ी बेच दी।
घर पहुंचकर चतुरी ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई और सतर्क रहने को कहा।
अगले दिन वह एक समान दिखने वाले दो खरगोश खरीद कर लाया उसने पत्नी से कहा यदि डाकू आ जाए तो मुझे बुलाने को कहे तो खरगोश के कान में मुझे बुलाने को कहना और उसे बाहर छोड़ देना बाकी सब मैं संभाल लूंगा। उधर बार-बार डाकुओं ने घोड़े की पूंछ पर मारा लेकिन पैसे होते तो निकलते गुस्से से लाल पीले होते हुए डाकू चतुरी के घर पहुंचे ,और चतुरी की पत्नी से चतुरी को बुलाने को कहा उसकी पत्नी ने खरगोश से छतरी को बुला लाने को कहा थोड़ी देर में चतुरी हाथ में खरगोश लिए घर आया।
खरगोश की करामात देखकर डाकुओं का गुस्सा काफूर हो गया।
उन्होंने सोचा खरगोश तो बड़े काम का है हमारी पत्नियां हमें बूलाने के लिए परेशान रहती है ,यह खरगोश उसके काम आएगा। उन्होंने हजार रुपए में खरगोश खरीद लिया घर जाकर डाकुओं ने खरगोश की समझदारी के बारे में अपनी पत्नियों को बताया एक दिन उसकी पत्नी ने डाकू को बुला लाने के लिए खरगोश को छोड़ा तो वह लौट कर ही नहीं आया।
डाकू समझ गए कि फिर चतुरी ने एक बार हमें बेवकूफ बना दिया है वह फौरन उसके घर पहुंचे और चतुरी को एक बोरी में बंद कर नदी में डूबने चल दिए थोड़ी दूर चल कर के थक गए और पास के मंदिर में खाना खाने बैठ गए वहां से एक ग्वाला अपनी गाय चराकर गुजर रहा था ,उसने बोरी में से किसी की आवाज सुनी तो बोरी का मुंह खोल दिया। उसने चतुरी से बोरी में बंद होने का कारण पूछा चतुरी ने कहा क्या बताऊं भाई यह लोग जबरदस्ती मेरी शादी राजकुमारी से करवाने ले जा रहे हैं ,लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता ,क्योंकि राजकुमारी कानि है।
यह सुनकर ग्वाला बोला मैं शादी करने के लिए तैयार हूं।
उसने चतुरी को बोरी से बाहर निकाला और खुद बोरी में बंद हो गया।
थोड़ी देर बाद डाकू आए और बुरी को उठाकर नदी में फेंक दिया लौटते समय रास्ते में उन्हें गाय के साथ चतुरी दिखाई दिया।
वह हैरत से उसे देखते रह गए चतुरी बोला तुमने मुझे नदी में फैका इसलिए यह गाय मुझे मिली ,अगर और ज्यादा गहराई में चला जाता तो हीरे जवाहरात मिलते।
हीरे-जवाहरात का नाम सुनते सरदार के मन में लालच आ गया।
बोला चतुरी भाई तू हमें हीरे जवाहरात दिलवा दे चतुरी उन्हें नदी पर ले गया और बोला तुम सब एक एक भारी पत्थर गले में बांध लो ,डाकुओं ने अपने -अपने गले में पत्थर बांध लिए चतुरी ने एक-एक करके सभी डाकुओं को नदी में धक्का दे दिया उसे हमेशा के लिए डाकुओं से छुटकारा मिल गया वह गाय लेकर घर लौट आया और अपनी पत्नी के साथ खुशी खुशी रहने लगा।

आयुष के बरसाती
सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला आयुष बारिश का बेसब्री से इंतजार करता था। उसे बारिश में भीगना बहुत पसंद था। आयुष के माता पिता बेहद गरीब थे। उसके पिता दर्जी थे और मां घरों में काम करती थी । उसकी एक छोटी बहन थी जिसका नाम तमन्ना था। वह दूसरी कक्षा में पढ़ती थी ।
दोनों ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे ।
आयुष अपने स्कूल का सबसे होनहार वह प्रतिभाशाली छात्र था।
अध्यापक वह अध्यापिकाएं सभी उसे बेहद प्रेम करते थे ।वह पढ़ाई के साथ – साथ खेल कूद, सामान्य ज्ञान ,व वाद-विवाद आदि सभी प्रतियोगिताओं में पहला स्थान प्राप्त करता था। इस बार बारिश के मौसम में उसने अपने दोस्त आदेश के हाथ में एक बड़ा ही सुंदर रंग-बिरंगे छाता देखा छाता बेहद खूबसूरत रंग-बिरंगा व कार्टून से सजा हुआ था।
कोई भी बच्चा छाते को देखकर उस पर मोहित हो जाता आयुष भी उस पर मोहित हो गया।
उसने आवेश से छाता लेकर हाथ में देखना चाहा तो आवेश गर्व से बोला ‘ अरे तू तो इसे हाथ भी मत लगाना बहुत महंगा है पूरे 350 रुपए का भला तेरी कहा औकात जो तू ऐसा छाता हाथ में भी लेकर देखे ‘। आयुष को आवेश की बात बहुत बुरी लगी वह बोला तुम तो मेरे दोस्त हो भला दोस्त भी ऐसा कहते हैं ,इस पर आवेश हंस कर बोला हमेशा ‘ हर चीज में तो तुम आगे रहते हो पहली बार तुम्हें नीचा दिखाने का मौका मिला है भला इसे मैं हाथ से कैसे जाने दू ‘ आयुष आवेश की मानसिकता जानकर हैरान रह गया आवेश अपनी छतरी आयुष को छोड़कर कक्षा के सभी बच्चों को दिखाने लगा।
आयुष आखिर बच्चा ही था उसने भी अपने माता-पिता से छाते की फरमाइश की पिता ने छाते के लिए बिल्कुल मना कर दिया और बोले बेटा कुछ दिनों की बारिश है ,फिर मौसम साफ हो जाएगा मैं तुम्हारे लिए प्लास्टिक की पन्नी से बरसाती कोट सिल दूंगा। वह सस्ता पड़ेगा और तुम्हारे छाते से ज्यादा बचाव करेगा।
पिता की बात सुनकर वह कुछ बोला नहीं उदास हो गया।
किंतु उसे अपने माता पिता की आर्थिक स्थिति का अंदाजा था।
अगले दिन उसके पिता मैं उसे प्लास्टिक की पन्नी से सिला बरसाती कोट दिया उसे पहन कर आयुष को बहुत अच्छा लगा ,उन्होंने तमन्ना के लिए भी छोटा बरसाती कोट सिल दिया। इस प्रकार आयुष के पिता की समझदारी से कम रुपयों में बारिश से दोनों बच्चों के बचाव का अच्छा इंतजाम हो गया।
अगले दिन झमाझम बारिश हो रही थी।
आयुष पिता की सिली बरसाती पहनकर स्कूल गया तो सभी बच्चे उसकी सुंदर बरसाती को देखकर दंग रह गए।
आयुष के दर्जी पिता ने बहुत ही कुशलता वह कलाकारी से बरसाती को सिला था।
इसलिए बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उन्होंने बरसाती में प्लास्टिक के ही रंग – बिरंगे कार्टून भी लगा दिए थे।
जो बहुत सुंदर लग रहे थे। सभी बच्चे आयुष को घेर कर खड़े हो गए ,और उसकी बरसाती को हाथ लगा कर देखने लगे। कक्षा में उसने अपनी बरसातीउतार कर सभी बच्चों को दिखा दी सभी बच्चे उत्सुकता से हाथ फेर -फेर कर देख रहे थे। और अधिकतर ने मन में ठान लिया था कि आयुष के पिता से ऐसी ही बरसाती वह अपने लिए भी बनवाएंगे।
आवेश चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ था तेज बारिश ने उसके छाते की तीलियों को ढीला कर दिया था जिससे उसका नया छाता पुराना और टूटा फूटा सा लग रहा था। आयुष आवेश की छतरी व उसकी चुप्पी को देखकर समझ गया कि उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है। वह उसके पास पहुंचा और अपनी बरसाती उसे देते हुए बोला दोस्त निराश होने की जरुरत नहीं है।
तुम्हारा छाता टूटा है तो क्या हुआ अभी तुम्हारे दोस्त की बरसाती सही सलामत है।
तुम आज इसे ही पहन कर घर चले जाना मुझे तो बारिश में भीगने मे बहुत आनंद आता है। आयुष की बातें सुनकर आवेश के मुंह से बोल ही नहीं निकले। वह रोते हुए बोला मेरे दोस्त ,मेरे भाई ,मुझे माफ कर दे मैं घमंड में खुद को पता नहीं क्या समझ बैठा था।
आज तुमने ही मुझे यह सिखाया है कि कभी अपनी अमीरी व रुपए का अभिमान नहीं करना चाहिए।
आज मेरा महंगा छाता तुम्हारे सस्ती बरसाती से हार गया और मुझे यह शिक्षा भी दे गया कि कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए ,और हर समय सबकी मदद करनी चाहिए। आयुष ने उसे गले से लगा लिया इस तरह दोनों दोस्त गहरे मित्र बन गए ,और आयुष के पिता को अनेक बरसाती बनाकर काम मिल गया।
इस प्रकार आयुष कि बरसाती ने जहां आवेश को सुधार दिया वहीं उसके पिता को भी बहुत सारा काम दिलवा दिया। जिससे उन्होंने बहुत लाभ हुआ कुछ ही समय बाद पूरी कक्षा ही नहीं बल्कि पूरे स्कूल के पास आयुष जैसी बरसाती थी।
जो उसके पिता ने ही ली थी।
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