Indian Festival Lohri – (लोहड़ी )पौष मास की अंतिम रात्रि, मकर संक्रांति के पूर्व संध्या पर मनाते है जो की जनवरी माह में 13 तारीख को होता है.
Indian Festival Lohri – कौन और कहाँ मानते है यह पर्व
लोहड़ी पर्व को उतर भारत में खास कर पंजाब और हरियाणा में काफी हर्षौल्लास से मनाया जाता है. यह त्यौहार मकर संक्रान्ति के संध्यापुर्व मनाया जाता है. संध्यापुर्व रात्रि के समय खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते है. रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाते है. नाच-गान से इस त्यौहार का आनंद उठाते है.
2024 में लोहड़ी कब है? : तारिक और महत्व
पंजाबी हिंदू त्योहार लोहड़ी पूरे उत्तर भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण समय है। लोहड़ी का आयोजन हर साल 13 जनवरी को किया जाता है और यह हर बार एक ही तारीख को आती है।
लोहड़ी का मुख्य उद्देश्य शीत ऋतु के आगमन का स्वागत करना है। इस दिन लोग अपने घरों के आसपास बड़े अलाव का आयोजन करते हैं और बच्चे इसे देखने के लिए विशेष रूप से उत्सुक रहते हैं। आग के चारों ओर एक साथ गाते और बजाते लोगों के दिल
यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में खास कर मनाते है. आजकल यह त्यौहार बंगाल और उड़ीसा में भी मनाया जा रहा है.
Indian Festival Lohri – क्यों मनाते है लोहड़ी
लोहड़ी त्यौहार की उत्पति के बारे में काफी मान्यताये है जो पंजाब की त्यौहार से जुडी हुई है. यह त्यौहार जाड़े की ऋतु आने का घोतक है.
इस त्यौहार की उत्पति की भी कई प्रच्चिन कथाएं है. जिसमे कहा गया है की प्रजापति दक्ष की पुत्री सती के ‘योगगिन दहन’ कर लिया था. इसलिए उनको याद करके अगिन जलाया जाता है. उस यज्ञ में प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान् शिव का भाग न निकलने के कारण और उनको अपमान करने के कारण सती द्वारा ‘योगगिन दहन’ किया गया. तब से ही इस त्यौहार में विवाहित पुत्रियों को माँ के घर से त्यौहार (वस्त्र, मिठाई, फल और रेवड़ी आदि) भेजा जाता है.
पूर्वी भारत में ‘खिचड़ी’ और दक्षिण भारत में ‘पोंगल’ भी लोहड़ी के पास का त्यौहार है और इसमें भी लड़कियों को त्यौहार आदि भेजा जाता है.
लकड़ी जलने के लिए गावं के लड़के महिना दिन पहले से ही लकड़ी और उपले इक्कठा करने लगते है. लकड़ियाँ नहीं मिलने पर कही से चुरा कर लोहड़ी में डाल देते है. लकड़ियों और उपले को चौराहे या गावं-मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर जलाई जाती है. गावं भर के लोग आग के चारो तरग घेर के खड़े रहते है और लोहड़ी के लोकगीत गाते है. प्रज्वलित अग्नि का परिक्रमा किया जाता है. वहाँ सभी उपस्थित लोगो को रेवड़ी प्रसाद के रूप में बाटा जाता है. सभी एक-दुसरे को गले लगाकर लोहड़ी की बधाई देते है. घर लौटते समय अग्नि से कुछ कोयले घर पर लाने की भी प्रथा है. Moral story in hindi -एक कहानी जो आपकी जीवन बदल देगी.
Indian Festival Lohri – लोहड़ी की कहानी (दुल्ला भट्टी की कहानी)
लोहड़ी में दुल्ला भट्टी की बहुत बड़ी मान्यता है. लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी ही रहता है. दुल्ला भट्टी की कहानी बहुत प्रसिद्ध है. लोहड़ी को इतिहास से जोड़ता भी है.
दुल्ला भट्टी की कहानी इस प्रकार है –
जब भारत में मुगलों का शासन था. तब मुग़ल शासक अकबर दिल्ली पर शासन करता था. उस समय संदल बार के जगह पर लडकियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगो को बेचा जाता था. लडकियों को जबरदस्ती मुस्मिल लडको से शादी कराया जाता था. उनको रोकने और बोलने के लिए किसी के पास हिम्मत नहीं था.
उस समय दुल्ला भट्टी पंजाब में रहता था. उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था. उसने इस प्रथा पर आवाज उठाई और एक योजना के तहत लडकियों की मुक्ति कराई. दुल्ला भट्टी ने सभी लडकियों की शादी हिन्दू लडको से कराया और उनके शादी का सभी व्यवस्था भी उसने खुद ही किया.
दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था. और उसकी वंशावली भट्टी राजपूत थे. उसके पूर्वज पिंडी भट्टियो के शासक थे जो की संदल बार में था. अब संदल बार पाकिस्तान में है. दुल्ला भट्टी सभी पंजाबियो का नायक था. उसके ही याद में दुल्ला भट्टी को गानों और लोकगीतों में गाते है और उसकी बहादुरी का मिसाल देते है.
आपको यह पोस्ट कैसा लगा जरुर कमेंट करे और फ्रेंड्स में share करे.