Inspiring Story for Students –
यह एक लड़के की कहानी है जिसने शून्य से आरंभ किया। उसके घर में एक समय का खाना नहीं था, लेकिन वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा। उसने IIT प्रवेश प्राप्त किया और एक उच्च गुणवत्ता वाली कंपनी में नौकरी पाई। सफलता किसी की गुलाम नहीं होती, यह उसकी उम्र की मेहनत और इच्छा का परिणाम होती है। यह प्रेरणास्पद कहानी हमें यह सिखाती है कि जब हमारे पास लगन और संघर्ष की आग होती है, तो हम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं, चाहे हमारा सामाजिक परिवार हो या कोई और चुनौती हो। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि कभी-कभी अंधकार में भी उजाले की राह दिखती है।
बरसात का समय था। रातें काली थीं, बिजलियाँ चमक रही थीं, और बारिश तेज थी। इस समय लोग अपने घरों में टीवी का मजा ले रहे थे या सो गए थे। एक घर में सभी लोग एक ही कमरे में बैठे थे। श्याम धीरे-धीरे सोने का प्रयास कर रहा था। उसकी मां उसके पिता को देख रही थी, उनकी आँखों में आशा का प्याला था। उनके पिता ने लचर चेहरा बनाया और चुपचाप यही कह रहे थे – “मैं क्या करूं, मेरी इच्छाशक्ति काम नहीं कर रही है, मैं तो चाहता हूं कि मेरा बेटा भूखा सो जाए।”
रात के 10 बज गए थे। बारिश धीमी हो गई थी। श्याम की मां ने उसके पिता से कहा – “बारिश धीमी हो गई है। थोड़ी सी चावल ही किसी से मांग कर लाते, तो उसको उबाल कर खा लेते।”
Inspiring story – उसके बापू कभी लौट कर नहीं आये.
उसके पिता को पता था कि दुकानदार उधार नहीं देगा, और इतनी रात को अब कोई दरवाजा भी नहीं खोलेगा। उन्होंने कहा – “तुम चूल्हा जलाओ और पानी को उबालो, तब तक मैं कहीं से चावल की व्यवस्था करके आता हूँ।”
श्याम भी कब से सोने का प्रयास कर रहा था, मगर पेट तो खाना मांग रहा था।
कहाँ सोने देगा खाली पेट? उसे तो बस भरा होना चाहिए। तुम्हारे पास है या नहीं ‘खाने के लिए’? उसे क्या मतलब है? श्याम भी अपने पिता का इंतजार करने लगा, अब शायद खाना मिल जाएगा।
उसकी मां पानी उबालकर इंतजार करने लगी। 1 घंटा हुआ… 2 हुआ… 3 घंटे भी हो गए। रात के 1 बज गए मगर उसके पिता नहीं आए। श्याम तो सो गया, भूख को हराकर, मगर उसकी मां बैठी इंतजार करती रही। अब आए… अब आए… मगर कोई नहीं आया। उबला हुआ पानी ठंडा हो गया और उसके साथ भूख भी।
Inspiring story – वह नक्सल विचार धारा से प्रभावित होने लगा
सुबह हुआ. पुरे गावं में खलबली मच गई. खोजने के लिए चारो तरफ लोग निकल पड़े. कोई कहता जानवर ले गये, कोई कहता नक्सल, तो कोई कहता गावं छोड़ कर चले गए. कही भी कुछ पता नहीं चला. एक रात में कहा गायब हुए कुछ पता नहीं किसी को भी.
10वीं कक्षा में पढ़ रहे श्याम के मन में विद्रोह भड़क उठा। वह अब समाज को सबक सिखने की सोचने लगा। समाज उसकी नजर में विलेन हो गया था, और उसके कारण उसके पिता ने उन्हें छोड़कर चले गए। समाज में फैली अराजकता को दूर करने के लिए वह नक्सल गतिविधियों में शामिल होने लगा। वह उनकी विचारधारा में विश्वास रखने लगा, और अब उसे लगता था कि हथियार ही समस्या का हल निकाल सकते हैं। लोगों को डरा कर धमकाकर ही कुछ किया जा सकता है, इसी विचार के साथ वह अग्रसर हुआ। उसकी मां उसके विचारों से परेशान हो गई और उसे समझाया – “किसी भी समस्या का हल हथियार उठाना नहीं है। अगर तुम्हें समाज की बुराइयों को दूर करना है, तो शिक्षा से करो। शिक्षा प्राप्त करो, शिक्षा से ही समाज को सुधारो।”
Inspiring story – जब वह सुपर थर्टी पंहुचा
मगर यह इतना आसान नहीं था। घर में एक वक्त का खाना नसीब नहीं हो रहा था। वह पढ़ाई का खर्च कहाँ से उठा पाएगा? सरकारी स्कूल का हाल ही किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में पढ़ाई करें भी तो कैसे? बढ़िया स्कूल में गार्ड देखकर ही स्कूल के अंदर घुसने नहीं देगा। वहां तो टाई-बेल्ट और जूते वाले ही पढ़ सकते हैं, हवाई चप्पल और खाली पैर वाले नहीं।
किसी के कहने पर उसकी मां उसे पटना ले गई “सुपर थर्टी” के आनंद जी के पास। जब वह वहां पहुँची तो उन दोनों के पैर में चप्पल भी नहीं थी। मगर गुरु को चप्पल और जूते से क्या, वो तो टैलेंट देखते हैं। उन्होंने उसका परीक्षण लिया और अपने पास रख लिया, उसका सभी खर्च सुपर थर्टी उठाने लगे। आनंद जी उसको पढ़ने लगे, और श्याम भी पूरे मन से पढ़ने लगा। उसे अपने दिन याद थे, भूखी रातें, नंगे पैर।
उसका मेहनत रंग लाया, वह IIT में सिलेक्ट हुआ और पढ़ाई पूरी करने के बाद कंपनी में नौकरी ली।
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