Mahashivratri – महाशिवरात्रि कब है भगवान शिव की पूजा कब और कैसे करें

Mahashivratri – महाशिवरात्रि कब मनायी जाती है –

फाल्गुन कृष्ण चतुदर्शी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है. यह पर्व लगभग फ़रवरी या मार्च महीने में आता है. महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इसी विवाह का उत्सव शिवरात्रि के रूप में मनाते है.

महाशिवरात्रि कब है।

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। अतः वर्ष 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024 दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी।

Mahashivratri – महाशिवरात्रि कौन और कहाँ मानते है 

महाशिवरात्रि हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार भारत में खास तौर पर मानाते है. उसके आलावा बांग्लादेश के हिन्दू भी महाशिवरात्रि मानते है. बंगलादेशी हिन्दू इस खास दिन चन्द्रनाथ धाम जो की चिटगावं में है जाते है. वहाँ के हिन्दुओ में मान्यता है की भगवान् शिव का व्रत और पूजा करने वाले स्त्री/पुरुष को अच्छा पति/पत्नी मिलती है. 

नेपाल में भी महाशिवरात्रि का खासा महत्व है. नेपाल के काठमांडू में स्थित भगवान् पशुपति नाथ का पूजन होता है. भगवान् पशुपति नाथ का पूजन करने के लिए पुर देश से लोग इकठ्ठे होते है. और बहुत ही श्रधा से पूजन करते है.

महाशिवरात्रि  – क्यों मनायी जाती है –

कहा जाता है इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रम्हा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रदोष के समय भगवान् शिव तांडव करते हुए ब्रम्हांड को अपने तीसरे नेत्र की तेज से समाप्त कर देते है. इसलिए भी इसे  महाशिवरात्रि  या कालरात्रि कहा गया है.

एक साल में 12 शिवरात्रि आती है जिसमे इस शिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।

महाशिवरात्रि  –  पौराणिक कथा –

एक बार पार्वती जो ने भगवान् शिव से पूछा – “ऐसा कौन सा व्रत है जिसके करने से मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते है.” शिवजी के शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर कहा सुने. – “एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था. पशुओ की हत्या करके वह अपने कुटुंब को पालता था. वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न हो सका. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-सम्बन्धी धार्मिक बाते सुनता रहा. संध्या  होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छुट गया. अपनी दिनचर्या की तरह वह जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था. वह एक बेल वृक्ष पर चढ़ गया. बेल वृक्ष के निचे शिवलिंग था जो ढका था शिकारी को उसका पता न चला।

उसने कुछ टहनी तोड़ी वें संयोग से शिवलिंग पर गिरी. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गये।

रात्रि का आखिरी पहर बित रहा था. तभी एक मृगी अपने बच्चो के साथ उधर से निकली. शिकारी के लिए यह अच्छा अवसर था. उसने धनुष पर तीर चढाने में देर नहीं लगाई. वह तीर छोड़ने ही वाला था की मृगी बोली, “हे पारथी! मैं बच्चो के इनके पिता के हवाले करके लौट आउंगी. इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हँसा और बोला “सामने आये शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मुर्ख नहीं, इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चूका हूँ. मेरे बच्चे खुख-प्यारस से मर रहे होंगे।”

“जैसे तुम्हे अपने बच्चो के ममता सता रही है, ठिक वैसे ही मुझे भी. इसलिए सिर्फ बच्चो के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूँ. मेरा विश्वास करो, मैं उन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ.” मृगी ने बोला।

मृगी का दिन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठ शिकारी बेलपत्र तोड़ कर निचे फेकता जा रहा था. सुबह होने वाला था. तभी उस रस्ते एक मृग उस रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया की इसका शिकार वह अवश्य करेगा. तभी मृग ने बोला “मैं उन मृगियों का पति हूँ. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष आता हूँ।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना घूम गया. उसने साड़ी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, “मेरी तीनो पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञा कर के गई है, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने जल्द ही उपस्थित होता हूँ. भगवन शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया. वह अपने अतीत के कर्मो को याद करके पश्ताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओ की ऐसी सत्यता और सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी गलानी हुई. उसके नेत्रों से आंसुओ की झड़ी लग गई. उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर मन को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल और दयालु बना लिया. देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे. घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओ ने पुष्प वर्षा की. तब शिकारी और मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए.

Mahashivratri – महाशिरात्रि – के दिन  कैसे करें पूजा – 

महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव को गंगाजल और दूध से भगवान् शिव का अभिषेक करना चाहिए. सभी को रात्रि में जागरण करके शिव पूजन का पाठ करना और सुनना चाहिए और शिव भजन भी करना चाहिए.

जो मनुष्य आर्थिक समस्या से परेशान है उसे महाशिवरात्रि -पर भगवान् शिव को शहद और घी से अभिषेक करना चाहिए और प्रसाद के तौर पर गन्ना अर्पित करे.

शास्त्रों में भोलेनाथ को महाकाल कहा गया है. जिनके सामने यमराज भी हाथ जोड़ कर खड़े रहते है. इसलिए इस दिन बेहतर स्वास्थ्य के लिए जल में दूर्वा मिलकर शिवजी को अर्पित करना चाहिए. और अधिक महामृतुन्ज्य मंत्र का जप करे.

संतान का इच्छा रखने वाले मनुष्य को महाशिवरात्रि के दिन दूध से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. साथ ही माता पार्वती, गणेश और कार्तिक की पूजा करना चाहिए.

“महामृतुन्ज्य मंत्र”

“त्रयम्ब्क्म यजामहे सुन्ग्धिम पुष्टिः बर्धनम उर्वारूकम इव बन्धनात मृत्योहमुक्तिय्मा अमृतात”

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