Short Family Story
सोहन 10 साल का था जब उसके माँ-बाप गुजर गए। उस समय, वह 6वीं कक्षा में पढ़ रहा था। माँ-बाप के निधन के बाद, सारी जिम्मेदारी उसके बड़े भाई दिवाकर पर आ गई।
जब दिवाकर के माता-पिता का निधन हुआ, तब वह पहले ही शादीशुदा था। वह और उसकी पत्नी ने अपने माता-पिता की देखभाल में बहुत सेवाएं की। उन्होंने सब कुछ बेचकर उनके इलाज में सहायता प्रदान की। फिर भी, किस्मत ने कुछ और मन्जूर किया। माता-पिता के निधन के बाद, सोहन की सारी जिम्मेदारी दिवाकर पर आ गई। दिवाकर ने भी अपना दायित्व पूरा किया और सोहन को किसी भी चीज की कमी का सामना नहीं करने दिया।
सोहन को पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया गया, और खर्च के लिए बची हुई खेत गिरवी में रख दिया गया। घर के हालात थोड़े कठिन हो गए, और कभी-कभी चूल्हे में आग भी नहीं जलाई जा सकती थी। लेकिन फिर भी, सोहन की पढ़ाई के खर्चों का ध्यान रखा गया। सोहन ने अपनी पढ़ाई में कमयाबी पाई, और एक बढ़िया सरकारी नौकरी प्राप्त की। दिवाकर बहुत खुश था, क्योंकि उसको अब लगता था कि उसने पिता की दिया हुआ जिम्मेदारी को अच्छे तरीके से निभाया है। अब वह नहीं डरता कि किसी चीज की कमी होगी, और न ही कभी अपने आपको उदास पाता है। सोहन को नौकरी मिलने पर, सभी खुश थे।
सब कुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच, दिवाकर ने सोहन की शादी कर दी, और उसके बच्चों की देखभाल करने का दायित्व सोहन को सौंप दिया। सोहन ने भी अपने दायित्व को ठीक से निभाने का प्रतिश्रुति दिया। दिवाकर बड़े भाई की मदद से, उन्होंने अपने पिता की दी हुई जिम्मेदारी को अच्छे तरीके से संभाला।
इस परिवार की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि परिवार के सदस्यों के बीच की भावनाओं और ज़िम्मेदारियों का महत्व होता है। यह भी दिखाता है कि एक साथ मिलकर, हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं।
एक बार सोहन घर आया था. उसके दिमाग में गलत बाते भर चुकी थी. उसकी बुधि भ्रष्ट हो चकी थी. वह दिवाकर के पास गया. दिवाकर अभी खेत से आया था. हाथ मुहँ धो रहा था. सोहन उसके पास गया और बोला “भैया आपसे कुछ बात करना है.”
“हां बोलो क्या बात है.बोलो.”
“भैया हमे अलग कर दो. यह रोज-रोह का ड्रामा ठिक नहीं है. हमलोग आपना अगल बनाकर खायेंगे.” सोहन बोला
दिवाकर वहाँ से उठ गया. उसकी आखे लाल हो गये. उसने इस बात की कल्पना भी नहीं किया था.
Short family story
Short family story – सोहन ही घर में दिवार बनाया
“क्या हो गया. ऐसी बाते क्यों कर रहा है. घर में छोटी-छोटी बाते होती रहती है. इसका मतलब अलग हो जायेंगे. पागल हो गया है तू.” भींगी आखो से दिवाकर ने बोला.
“मैं यहाँ रहता नहीं हूँ. आपलोग मेरी पत्नी को दुःख दे रहे है. मैं ही कमा कर खिला रहा हूँ और मेरी ही पत्नी के साथ अच्छे से नहीं रहते. और हां आपने जितना मुझे किया था मैं भी आपलोग को उतना कर दिया हूँ.” सर झुकरकर खड़े सोहन ने बोला.
अगले दिन आगन में दिवार बनाया जा रहा था. दिवाकर अपने घर में बैठ बीती बाते याद कर रहा था. उधर सोहन दिवार खड़ी कर रहा था. वही सोहन जो कभी बच्चा था, वही सोहन जिसके खाए बिना कभी खाना नहीं खाता था. आज वही सोहन दीवारे खड़ी कर रहा था.
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